हम मानसिक तौर पर अपने आप को कितना भी विकसित समझने का प्रयास करें, लेकिन तबतक हम विकसित और योग्य नहीं कहलाएंगे जब तक हम प्राकृतिक तौर पर जीना नहीं सीख जायेंगे।
रसायन युक्ता खाना कीेट नाशक और उर्वरक से पैदा की गई अनाज व सब्जियां हमारे जीवन में बीमारियो का पिटारा लती रहती है।
इको बलैंस को खराब करके हम अपनी प्रकृति को चुनौती दे रहे है।
हम नहीं समझ पाते आखिर किसान 6 महीने से मेहनत करके अनेक आकस्मिक आपदाओं से बचते बचाते हमारे लिए अनाज सब्जियां पैदा करके देता है। लेकिन उसके फसल का दाम उनके मेहनत और लागत को भी नहीं पूरा कर पाता।
लेकिन आखिर कैसे वहीं गेहूं जो किसान ₹16/kg में बेचता है। वो गेहूं मिल से पीस कर चमकीले पैकेट में पैक होकर ₹35/kg कैसे बिक जाता है।??
आखिर डबल का अंतर कैसे पैदा होगया!!.
जबकि ये कम्पनियां हमको खतरनाक chemical प्रिजर्वेटिव मिलाकर हमको खिलाती है ।
फिर भी हम वहीं जहर दोगुनी कीमत पर खरीदते भी है और हम खाते भी है।
आखिर क्यों?????.
क्यूकी हम को बाजारवाद और ग्लैमर वाद ने इस तरह ब्रेन वाश किया पीछले कई सालो से, कि हम अपने स्वास्थ्य को भूल कर अपनी भारतीय आयुर्वेदिक जीवन पद्वति को भूलकर प्रोपेगेंडा के शिकार हो गए।।
जीवनभर खरनाक कैमिकल की दवाइयां न खानी पड़े आपको , इसलिए आप अपने खानेपीने की वस्तुओं को जांच परख कर इस्तेमाल करें और निरोग जीवन जिए।
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