मंगलवार, 19 जनवरी 2021

अच्छी सेहत और लम्बी उम्र चाहिए, तो गेंहू-चावल नहीं बल्कि 'मोटा' अनाज खाइए ,if you want good health and long life, then eat 'fat' grains rather than wheat-rice

हम "रूरल आर्गेनिक इंडिया" (Rural Organic India) हैं। हम कई पीढ़ियों से भारत में जैविक खेती करते आ रहे है। हम एक अनुभवी किसान है। हमारे पास अपना जैविक खेत है। हमारे पास भारत सरकार PGS(Participatory Guarantee System for India) से प्रमाणित किसानों का समूह है, जो जैविक अनाज,फल ,फूल ,औषधियां एवंम सब्जियाँ उगाते है। हमारे पास जहरीले कीटनाशक उर्वरक मुक्त जैविक अनाज होता है । हम भारत में एक विश्वसनीय जैविक खाद्य पुनर्विक्रेता हैं। "स्वस्थ्य आहार और स्वस्थ्य जीवन हमारा उद्देश्य" 
https://ruralorganic.wordpress.com/





















भारत देश में पुराने ज़माने में लोग अच्छी सेहत और लम्बी उम्र वाले होते थे क्यूंकि
हमारे बड़े-बूढ़े अक्सर मोटा अनाज खाते थे।और वे मोटा अनाज खाने की सलाह देते थे, लेकिन अब यह स्टडी में भी साबित हो गया है। मोटा अनाज सेहत ही नहीं, पर्यावरण को भी दुरुस्त रखता है। भारत में ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, जौ और कई अन्य मोटे अनाज उगाए जाते हैं। ये अनाज आयरन, कॉपर, प्रोटीन जैसे तत्वों से तो भरपूर होते और इनमे  नेचुरल पोषक तत्त्व रहते है।  इनकी खेती आर्गेनिक तरीके से होती हैं, गेहूं, धान जैसी फसलों की तरह ग्रीन हाउस गैसों के बनने का कारण भी नहीं बनते।


गेहूं-धान उगाने में यूरिया का इस्तेमाल होता है 
एक स्टडी बताती है कि गेहूं और धान को उगाने में यूरिया का बहुत प्रयोग किया जाता है। यूरिया जब विघटित होता है, तो नाइट्रस ऑक्साइड, नाइट्रेट, अमोनिया और अन्य तत्वों में बदल जाता है। नाइट्रस ऑक्साइड हवा में घुलकर स्वास्थ्य के लिए खतरा बनता है। इससे सांस की गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। यह एसिड रेन का कारण भी बनती है। यह गैस तामपान में भी काफी तेजी से बढ़ोतरी करती है।

कम पानी में भी उग जाते हैं मोटे अनाज
जर्नल ग्लोबल एनवायरनमेंटल चेंज में छपी इस स्टडी में कहा गया है कि गेंहू और धान के विपरीत मोटे अनाजों को उगाने के लिए यूरिया की खास जरूरत नहीं होती। वह कम पानी वाली जमीन में भी आसानी से उग जाते हैं। इस कारण ये पर्यावरण के लिए ज्यादा बेहतर होते हैं।

सरकार का जोर
जहां मोटे अनाजों का रकबा कम हो रहा है और किसान उन्हें कम उगा रहे हैं, वहीं सरकार इन्हें बढ़ावा देने पर जोर दे रही है। वह इनके पोषक गुणों को देखते हुए लोगों से इनका ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने को कह रही है। वह इन्हें मिड-डे मील स्कीम में भी शामिल कर रही है।



कमी को लेकर चिंता
इस पर अफसोस जताया गया है कि पिछले कई दशकों से मोटे अनाजों के रकबे में लगातार कमी आती जा रही है। स्टडी के मुताबिक, 1966 में देश में करीब 4.5 करोड़ हेक्टेयर में मोटा अनाज उगाया जाता था। रकबा घटकर ढाई करोड़ हेक्टेयर के आसपास रह गया है। स्टडी में इसके लिए भारत की हरित क्रांति को जिम्मेदार ठहराया गया है।


अगर आप चाहते हैं कि आप हमेशा स्वस्थ रहें तो आपको आज ही ज्वार, बाजरा, रागी और मक्का जैसे मोटे अनाजों का सेवन शुरू कर देना चाहिए। गेंहू और धान जैसे अनाज में सभी पोषक तत्व नहीं पाए जाते तथा इनमे उगाने के लिए होने वाले रसायन के इस्तेमाल से ये कम  पोषक तत्त्व वाले हो जाते है , 





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Organic गुड़ और A2 घी को मिलाकर खाने का फायदा

हम "रूरल आर्गेनिक इंडिया" (Rural Organic India) हैं। हम कई पीढ़ियों से भारत में जैविक खेती करते आ रहे है। हम एक अनुभवी किसान है। हम...